उपनिषद् हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं। ये वैदिक वाङ्मय के अभिन्न भाग हैं। ... उपनिषदों में कर्मकाण्ड को 'अवर' कहकर ज्ञान को इसलिए महत्व दिया गया कि ज्ञान स्थूल (जगत और पदार्थ) से सूक्ष्म (मन और आत्मा) की ओर ले जाता है। ब्रह्म, जीव और जगत्‌ का ज्ञान पाना उपनिषदों की मूल शिक्षा है


1) ऐतरेयोपनिषद्ऐतरेय उपनिषद एक ऋग्वेदीय उपनिषद है। ऋग्वेदीय ऐतरेय आरण्यक के अन्तर्गत द्वितीय आरण्यक के अध्याय 4, 5 और 6. का नाम ऐतरेयोपनिषद् है। यह उपनिषद् ब्रह्मविद्याप्रधान है।  DOWNLOAD


2) माण्डूक्योपनिषद्माण्डूक्योपनिषद अथर्ववेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। यह उपनिषद संस्कृत भाषा में लिखित है। इसके रचयिता वैदिक काल के ऋषियों को माना जाता है। इसमें आत्मा या चेतना के चार अवस्थाओं का वर्णन मिलता है - जाग्रतस्वप्नसुषुप्ति और तुरीय। प्रथम दस उपनिषदों में समाविष्ट केवल बारह मंत्रों की यह उपनिषद् उनमें आकार की दृष्टि से सब से छोटी है किंतु महत्त्व के विचार से इसका स्थान ऊँचा है, क्योंकि बिना वाग्विस्तार के आध्यात्मिक विद्या का नवनीत सूत्र रूप में इन मंत्रों में भर दिया गया है। DOWNLOAD

3) श्वेताश्वतरोपनिषद्श्वेताश्वतर उपनिषद् जो ईशादि दस प्रधान उपनिषदों के अनंतर एकादश एवं शेष उपनिषदों में अग्रणी है कृष्ण यजुर्वेद का अंग है। छह अध्याय और 113 मंत्रों के इस उपनिषद् को यह नाम इसके प्रवक्ता श्वेताश्वतर ऋषि के कारण प्राप्त है। मुमुक्षु संन्यासियों के कारण ब्रह्म क्या है अथवा इस सृष्टि का कारण ब्रह्म है अथवा अन्य कुछ हम कहाँ से आए, किस आधार पर ठहरे हैं, हमारी अंतिम स्थिति क्या होगी, हमारे सुख दु:ख का हेतु क्या है, इत्यादि प्रश्नों के समाधान में ऋषि ने जीव, जगत्‌ और ब्रह्म के स्वरूप तथा ब्रह्मप्राप्ति के साधन बतलाए हैं और यह उपनिषद सीधे योगिक अवधारणाओं की व्याख्या करता है।   DOWNLOAD


4) 108 उपनिषद ( उपनिषद ब्रह्म ) : लगभग 108 उपनिषद ज्ञात हैं, जिनमें से पहले दर्जन या तो सबसे पुराने और सबसे महत्वपूर्ण हैं और उन्हें प्रमुख या मुख्य (मुख्य) उपनिषद कहा जाता है।  मुख्य उपनिषद ज्यादातर ब्राह्मणों और आरण्यक के अंतिम भाग में पाए जाते हैं और सदियों से, प्रत्येक पीढ़ी द्वारा याद किए गए और मौखिक रूप से पारित हो गए। मुख्य उपनिषद आम युग की भविष्यवाणी करते हैं, लेकिन उनकी तारीख पर कोई विद्वानों की सहमति नहीं है, या यहां तक ​​कि जो बौद्ध पूर्व या बाद के हैं। आधुनिक विद्वानों द्वारा बृहदारण्यक को विशेष रूप से प्राचीन माना जाता है।   DOWNLOAD

5) कल्याण उपनिषदDOWNLOAD